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April 13, 2024
The Kashmir Files poster
The Kashmir files
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नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सब स्वस्थ हैं और सुरक्षित है |

आप सभी को इनसाइड प्रेस इंडिया और हमारी पूरी टीम की तरफ से होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं. होली का यह पर्व आपके जीवन में भी हर्ष और उल्लास लेकर आए और आपके जीवन को और मधुरता प्रदान करें.


आज आपके सामने वर्तमान में चल रहे एक बड़े मुद्दे पर बात करेंगे और आपको बताएंगे कि उस पर क्या है बवाल?
हाल ही में कहीं ना कहीं आपने एक नई पिक्चर द कश्मीर फाइल्स के बारे में कहीं ना कहीं पढ़ा होगा या सुना जरूर होगा, तो आखिर क्या है कश्मीर फाइल्स को लेकर चल रहा पूरा विवाद जो लोकसभा तक जा पहुंचा और लोकसभा के सांसद ने इस पिक्चर को पूरे भारत में बैन करने तक का प्रस्ताव दिया.

तो आइए सबसे पहले आपको इसके निर्देशक और स्टार कास्ट के बारे में बताते हैं. कश्मीर फाइल्स के निर्देशक हैं विवेक अग्निहोत्री, इस फिल्म को लिखा गया है विवेक अग्निहोत्री और सौरभ पांडे द्वारा जिसमें मुख्य कलाकारों के रूप में अभिनय किया गया है मिथुन चक्रवर्ती अनुपम खेर और दर्शन कुमार द्वारा. अगर कम शब्दों में इस फिल्म के बारे में बताया जाए तो यह फिल्म द कश्मीर फाइल्स एक कहानी है जो 1990 में कश्मीरी पंडित समुदाय के नरसंहार की पहली पीढ़ी के पीड़ितों के वीडियो साक्षात्कार पर आधारित फिल्म है जैसा कि इसके निर्देशक ने एक इंटरव्यू में बताया है.

इस फिल्म ने जो कि 1990 के दशक में कश्मीर से हिंदुओं के पलायन पर आधारित है, पूरे भारत में विवाद खड़ा कर दिया है, यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी मे भी आपस में इसे लेकर विवाद हुआ .
अगर फिल्म की बात की जाए तो द कश्मीर फाइल्स 11 मार्च 2022 को बड़े पर्दे पर उतारी गई जिसमें की एक विश्वविद्यालय के छात्र की कहानी है जिससे पता चलता है कि उसके कश्मीरी हिंदू माता-पिता को इस्लामी आतंकवादियों ने मार दिया था जबकि उसे बचपन से लेकर आज तक उसके दादा दादी ने बताया था कि उसके माता-पिता को किसी ने मारा नहीं बल्कि दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई.

इस फिल्म को कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है कई मुख्य फिल्म क्रिटिक्स ने इसे ‘ शोषक’ तक कहा और इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर भी एक लंबी बहस शुरू हो गई. फिल्म के समर्थकों ने कहा कि यह कश्मीर के इतिहास के एक खूनी हिस्से पर प्रकाश डालता है कई समर्थकों ने यह भी कहा कि उन्हें आज तक उनकी ही सरकार ने अपने देश के इस हिस्से से कभी वाकिफ नहीं होने दिया जिसे आज इस फिल्म के द्वारा प्रदर्शित किया जा रहा है.
और आलोचकों ने कहा कि यह तथ्य और इस्लामोफोबिया के साथ एक लापरवाह तरह से बनाई गई फिल्म है.
लेकिन यह फिल्म ज्यादा विवादों और ज्यादा प्रकाश में तब आई जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा सरकार के प्रमुख मंत्रियों ने इस फिल्म की प्रशंसा की, भाजपा शासित राज्यों में इस प्रकार माफ कर दिया गया और मध्यप्रदेश राज्य ने पुलिस को इसे देखने के लिए 1 दिन की छुट्टी भी दी गई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फिल्म के आलोचकों को फिल्म को बदनाम न करने के लिए कहा.
तो आखिर इस कम बजट की पिक्चर ने ऐसा क्या अलग किया कि यह इस कदर बातों और विवादों में आ गई आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं.

कश्मीर हमेशा से ही भारत में एक विवादास्पद मुद्दा है

जैसा कि हम सब जानते हैं कि कश्मीर भारत और भारत वासियों के लिए हमेशा से ही एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा रहा है. हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की सीमा और कश्मीर में हमेशा चलते रहे विवादों पर किसी भी फिल्म का आना एक चर्चा का विषय रहना ही था.
कश्मीर घाटी में 1980 के दशक के अंत से भारतीय शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह भी देखा गया है. 1990 के दशक में इस्लामी उग्रवादियों ने कश्मीरी पंडित, उच्च जाति के पंडितों जो कि अल्पसंख्यक समूह के थे, को निशाना बनाना शुरू किया.
कई लोग मारे गए और कुछ अनुमान के अनुसार उनमें से सैकड़ों हजारों अपने घरों से भाग गए जिनमें से अधिकांश फिर कभी वापस कश्मीर नहीं लौटे.

इसके बाद कश्मीर में भारत की सरकार ने अपनी सेना को तैनात किया और उग्रवादियों को गिरफ्तार करने और पूछताछ करने के लिए अधिकार दिए. लेकिन कश्मीर का हाल ही कुछ ऐसा है कि वहां के स्थानीय लोगों ने सुरक्षाबलों स्थानीय लोगों से ज्यादती का आरोप लगाया. हालांकि भारत सरकार सदैव से ही कश्मीर को अपनाती रही है और वहां सदैव विकास का कार्य करवाती रही है. परंतु फिर भी कुछ उग्रवादियों के चलते इस क्षेत्र में नियमित रूप से दिल्ली के खिलाफ भारी और अक्सर उग्र विरोध प्रदर्शन हुए हैं जो नागरिक हताहतों के साथ समाप्त हुए हैं.
हाल ही में मोदी सरकार ने कश्मीर की संवैधानिक रूप से गारंटी कृत स्वायत्तता को 2019 में रद्द करने के बाद वहां के हालात फिर भी कुछ बेहतर हुए हैं.
राष्ट्रीय कृत पार्टी ने विवादित क्षेत्र को चुनावी मुद्दे के रूप में भी इस्तेमाल किया है इसने विशेष रूप से हिंदू पलायन के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया है और यह आरोप लगाते हुए कांग्रेस पार्टी जो पहले उस वक्त सत्ता में थी, के लिए कहा है कि उन्होंने कश्मीरी पंडितों की उपेक्षा और दुर्दशा की है.
हालांकि कश्मीरी पंडित समुदाय ने भी कहा कि किसी भी पार्टी ने उनके पुनर्वास के लिए बहुत कुछ नहीं किया.
पत्रकार और लेखक राहुल पंडिता के अनुसार कश्मीर के उत्पीड़ित अतीत ने कई पुस्तक और फिल्मों को प्रेरित किया है लेकिन कुछ नहीं पूरी तरह से पलायन पर ध्यान केंद्रित किया है. उन्होंने कहा कि ड कश्मीर फाइल्स को इतनी कड़ी प्रतिक्रिया मिली है क्योंकि पंडितों ने हमेशा महसूस किया कि उनकी कहानी को दबा दिया गया है.

पंडिता, जिनकी पुस्तक our moon has blood clots : a memoir of the last home जो की एक किशोर के रूप में श्रीनगर से भागने के अपने अनुभव पर आधारित है, ने कहा है कि उन्हें आश्चर्य होता है कि देशभर के लोग कश्मीर के इस अध्याय के बारे में कितना कम जानते हैं.
लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि आधुनिक भारत के इतिहास में ऐसे कई अध्याय हैं जैसे निचली जातियों के खिलाफ हिंसा या उत्तर पूर्व में भारत की सुरक्षा बलों के खिलाफ आरोप या माओवादी विद्रोह देखने वाले राज्यों के खिलाफ आरोप जिन्हें शायद ही कभी मुख्यधारा सिनेमा में बताया गया हो.

फिल्म पर हो रही राजनीति

इस फिल्म ने निश्चित रूप से कश्मीरी पंडित समुदाय के दिल को छुआ है लेकिन समीक्षकों ने जटिल इतिहास को देखते हुए बारीकियों की कमी के लिए फिल्म की निंदा भी की है. कुछ नहीं अभी भी प्रदर्शन की प्रशंसा की जबकि कुछ ने कहा है कि यह मुसलमान की बदनामी की भरपाई नहीं करता.

दर्शकों के भी इस फिल्म पर मिले-जुले रुझान रहे हालांकि अधिकांश दर्शकों ने इस फिल्म को सराहा है.

कुछ लोगों ने इस फिल्म को पूरी तरह से खारिज भी किया और कहा कि आप किसी भी मतभेद को तब तक हल नहीं कर सकते जब तक आप पीड़ित लोगों के दर्द को स्वीकार नहीं करते.
हाल ही में भाजपा की महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट कर लोगों से इस फिल्म को देखने का आग्रह किया और कहा कि इस फिल्म को देखें ताकि निर्दोषों के खून में लथपथ यह इतिहास खुद को फिर कभी ना दोहराए.

हाल ही में इस फिल्म के निर्माताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और बॉलीवुड के कुछ सितारे भी इस फिल्म के पक्ष में उतरे जैसे कि अक्षय कुमार और कंगना रनौत ने इस फिल्म का समर्थन किया.

हाल ही में अनुपम खेर से यह पूछा गया कि आप इस फिल्म को सिर्फ भाजपा के शासन के दौरान ही बना सकते थे तो इस पर अनुपम खेर ने जवाब दिया कि हो सकता है यह सच हो हर फिल्म का अपना समय होता है.
फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री जी ने भाजपा समर्थक के रूप में भी देखा जाता है उन पर उनके काम में अशुद्धि का आरोप लगाया गया.
पिछले हफ्ते वायु सेना के squadron लीडर और उनकी मृत्यु को दर्शाने वाले दृश्यों को शामिल करने से रोक दिया गया क्योंकि उनकी पत्नी ने एक मुकदमा दायर किया जिसमें उन्होंने कहा कि विवरण तथ्यात्मक रूप से गलत थे और उन्हें अपमानित किया गया.

इससे पहले विवेक अग्निहोत्री की एक और फिल्म आई थी जिसका नाम था द ताशकंद फाइल्स इस फिल्म में भी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत में एक साजिश का आरोप लगाया गया था और इस फिल्म पर भी अफवाहों को तथ्यों के रूप में पेश करने के लिए उनकी आलोचना की गई. इस फिल्म के लिए विवेक अग्निहोत्री को लाल बहादुर शास्त्री के पोते ने एक कानूनी नोटिस भी भेजा था यह कहते हुए कि यह फिल्म अनुचित और अनावश्यक विवाद पैदा करने की कोशिश कर रही थी

फिल्म के निर्माता व निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस पर बयान देते हुए कहा है कि मैं कश्मीर फाइल्स कोई हिंदू या मुस्लिम के बारे में नहीं है बल्कि यह फिल्म लोग जैसे विश्वास करना चाहे वैसे हैं.
सोमवार रात तक फैक्ट चेकिंग प्लेटफार्म अल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद जुबेर ने एक वीडियो साझा की जिसमें दर्शकों को मुस्लिम विरोधी नारे लगाते हुए दिखाया गया था.

द कश्मीर फाइल्स के बारे में

अगर इस फिल्म की स्टोरी के बारे में बात की जाए तो जैसा कि पूर्व में हमने बताया कि यह फिल्म 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन के आसपास की स्थिति को दर्शाती है.
पंडित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कृष्ण पंडित नामक एक युवा छात्र की कश्मीर यात्रा पर केंद्रित है जिसे यह विश्वास दिलाया गया था कि उसके माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गए थे जैसा कि उसको उसके दादा पुष्कर नाथ ने बताया था जो कि फिल्म में अनुपम खेर हैं.
यह फिल्म उस दौर की घटनाओं को नरसंहार के रूप में चित्रित करती है जिसमें कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार किया गया था महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया बच्चों को गोली मार दी गई और बहुत से विस्थापित परिवारों को आज तक शरणार्थी के रूप में जीवित दिखाया गया है.

अगर इस फिल्म की बारे में क्रिटिक्स की बात की जाए तो इंडिया टुडे के चैती नरूला ने फिल्म को आंख खोलने वाला बताते हुए और प्रदर्शन की प्रशंसा करते हुए इस फिल्म को पांच में से चार स्टार दिए . प्रसिद्ध न्यूज़पेपर द क्विंट की स्तुति घोष ने फिल्म को पांच में से 3.5 की रेटिंग दी है और पाया कि फिल्म ने कश्मीरी पंडितों के लिए एक सम मोहक प्रस्तुति प्रस्तुत की है.
इसके विपरीत ही द इंडियन एक्सप्रेस की शुभ्रा गुप्ता ने फिल्म को पांच में से 1.5 स्टार दिए और कहा कि बारी क्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है यह फिल्म प्रभावी रूप से सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवचन के साथ प्रचार का काम करती है.
इस फिल्म को हरियाणा मध्य प्रदेश गुजरात उत्तराखंड उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में कर मुक्त घोषित कर दिया गया है. 11 मार्च 2022 को भारत में 630 से अधिक स्क्रीन पर इसे रिलीज किया गया फिल्म ने पहले दिन घरेलू बॉक्स ऑफिस पर 3.55 करोड़ रुपए कमाए. और दूसरे ही दिन 139.44 % की वृद्धि के साथ ₹8.50 करोड़ कमाए.
फिल्म के मुख्य पात्रों की बात की जाए तो

मिथुन चक्रवर्ती, ब्रह्म दत्त (IAS) के रूप में
अनुपम खेर, पुष्कर नाथ पंडित के रूप में
दर्शन कुमार, कृष्ण पंडित के रूप में
पल्लवी जोशी, राधिका मेनन के रूप में
चिन्मय मंडलेकर, फारुख मलिक बिट्टा के रूप में
प्रकाश बेलावाड़ी, डॉ महेश कुमार के रूप में
पुनीत इस्सर, डीजीपी हरिनारायण के रूप में
भाषा सुम्बली, शारदा पंडित के रूप में
वह अन्य मुख्य किरदार हैं |

अगर फिल्म की रेटिंग की बात की जाए तो इस फिल्म को आईएमडीबी पर इस वक्त 8.3/10 की रेटिंग मिली हुई है जो कि बहुत ही शानदार रेटिंग है.
हम सब जानते हैं कि जब भी किसी संवेदनशील मुद्दे पर कोई फिल्म प्रस्तुत की जाती है तो उसकी आलोचनाएं और उसकी प्रशंसा दोनों ही खूब की जाती है.
परंतु इनसाइड प्रेस इंडिया हमारे देश के लोगों को हमारे देश के अतीत के बारे में जानने उसे समझने और उससे सीख लेकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहता है. हम इस फिल्म को 4.5/5 की रेटिंग दे रहे हैं.

फिल्म में अनुपम खेर का अभिनय बहुत ही दिलचस्प और बेहद शानदार है फिल्म का निर्देशन विवेक अग्निहोत्री द्वारा बहुत ही बेहतर ढंग से किया गया है.
फिल्म के डायलॉग और स्क्रीनप्ले बिल्कुल हालातों और जज्बातों के मुताबिक हैं.
इनसाइड प्रेस इंडिया की इस पर रेटिंग ‘MUST WATCH’ है.

इस फिल्म पर किस आर्टिकल के माध्यम से हम किसी भी जाति धर्म या संप्रदाय का समर्थन नहीं करते हैं. हम फिल्म को भारत देश के अतीत को जानने के लिए देखने की सलाह देते हैं.

आज के लिए इतना ही अगले आर्टिकल में फिर लौटेंगे किसी ज्वलंत अथवा रोचक मुद्दे पर आपको बेहतर ढंग से जानकारी देने के लिए. तब तक के लिए स्वस्थ रहें और सुरक्षित रहें.

INSIDE PRESS INDIA

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