(Want to read in English? Kindly change the site language from top right corner)
श्रीलंका, हमारा पड़ोसी देश हाल ही में एक ऐसे वित्तीय संकट से जूझ रहा है जिसका अनुमान लगा पाना भी संभव नहीं है. आप में से भी अधिकतर लोगों ने हाल ही में अखबारों या टेलीविजन में श्रीलंका की दिवालिया होने की खबरें पढ़ी होंगी आज इंसाइड प्रेस इंडिया के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि वह कौन से कारण रहे जिनकी वजह से श्रीलंका की इकोनामी इस तरह बर्बादी की कगार पर आ गई.
अगर आपने अभी तक इनसाइड प्रेस इंडिया को सोशल मीडिया पर फॉलो नहीं किया है तो कृपया हमें फॉलो करें और आर्टिकल पढ़ने के बाद नीचे कमेंट बॉक्स में अपने रिव्यू हमें जरूर दें, तो आइए शुरू करते हैं.
श्रीलंका ने अपने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी है और सभी सोशल मीडिया वेबसाइट्स जैसे की फेसबुक और ट्विटर पर पाबंदियां लगा दी गई है और पूरे श्रीलंका में कर्फ्यू लगा दिया गया है.
इसके विरोध में हजारों लोग वहां की सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं और श्रीलंका में खाने-पीने के सामानों की और पेट्रोल तक की भारी किल्लत है. वहां के प्रदर्शनकारी बहुत गुस्से में है और उन्होंने वहां के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे के आवास को भी घेर लिया है. श्रीलंका में अब यह हालत इतनी खराब हो चुकी है कि वहां के सभी कैबिनेट मिनिस्टर्स ने इस्तीफा दे दिया है.
श्रीलंका पूरा देश दिवालिया होने की कगार पर है, तो आखिर ऐसे क्या कारण रहे जिसकी वजह से श्रीलंका को इतना बड़ा इकोनामिक नुकसान उठाना पड़ा कि देश की हालत कुछ ऐसी हो गई.
आपको श्रीलंका की आंतरिक इकॉनमी के कुछ आंकड़े यदि बताएं जाए तो फरवरी के महीने में जो श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार था वह सिर्फ $2.3 बिलियन था. अगर जनवरी 2020 से इसे कंपेयर किया जाए तो यह लगभग 70% कम विदेशी मुद्रा भंडार है.
आप लोग भी जानते हैं कि अगर किसी देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार में कमी है तो इसका सीधा अर्थ है कि वह देश बाहर के देशों से सामान आयात नहीं कर पाएगा. श्रीलंका के वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ इतने ही बचे हुए हैं कि यह देश अपने 1 महीने का सामान खरीद सकता है.
इसके अलावा श्रीलंका ने जो बाकी देशों से कर्जा उठाया हुआ है उसकी लगभग $4 बिलियन की लोन पेमेंट अभी बाकी है.
अगर भारत की बात की जाए तो भारत में हम बाहर से इंपोर्टेड सामान को एक लग्जरियस सामान की तरह देखते हैं जैसे इंपोर्टेड मोबाइल फोन इंपोर्टेड गाड़ियां लेकिन श्रीलंका की इकोनामी सिर्फ इंपोर्टेड सामान पर ही निर्भर करती है.
रोजमर्रा के सामानों के लिए भी जैसे चीनी, दलहन और फार्मास्यूटिकल्स उत्पादों के लिए भी श्रीलंका को बाहर के देशों से ही यह सब आयात करना पड़ता है.
अब क्योंकि कम विदेशी मुद्रा भंडार के चलते श्रीलंकन सरकार बाहर के देशों से यह सब चीजें अधिक मात्रा में इंपोर्ट नहीं कर रही है इसलिए देश के अंदर इन सभी रोजमर्रा के सामानों की कीमतें आसमान छूने पर हैं. श्रीलंका में सिर्फ पिछले महीने में महंगाई दर 25% से अधिक हो गई है.
वहां के लोगों को अब रोजमर्रा के सामान जैसे चावल या चीनी या दूध खरीदने में भी अब दिक्कतें हो रही है.
एक श्रीलंका के एक्टिविस्ट के मुताबिक चावल का दाम श्रीलंका में अगले हफ्ते तक 500 प्रति किलोग्राम हो जाएगा ( श्री लंकन रूपीस में )
3.94 Sri lankan Rupee = 1 INR
अगर आज के दिन श्रीलंका की बात की जाए तो वहां चावल 290 प्रति किलोग्राम, चीनी 290 और मिल्क पाउडर 790 प्रति किलोग्राम तक बिक रहा है.
हालत यह हो चुकी है कि वहां के कुछ रेस्टोरेंट्स में अब एक कप चाय 100 तक बिकने लग रही है.
इसके अलावा अब श्रीलंका पूरे देश में पावर क्राइसिस भी चलने लग रही है यानी बिजली की समस्या.
इस वक्त श्रीलंका में 24 घंटों में से सिर्फ 4 घंटे ही बिजली आ रही है. वहां इतने अधिक पावर कट किए जा रहे हैं कि श्रीलंका के पावर मिनिस्टर ने श्रीलंकन अधिकारियों से कहा है कि सड़कों पर जो स्ट्रीट लाइट जल रही है उन्हें बंद कर दिया जाए ताकि कुछ बिजली की बचत हो.
सरकार ने अपने इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को यह निर्देश दिए हैं कि वह इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन कि श्रीलंकन ब्रांच से जोकि लंकन इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन है, वहां से डीजल ले.
श्रीलंकन इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने 6000 लीटर ऑयल दिया है श्रीलंका को ताकि हालात कुछ सुधारें जा सके.
वहां पर कुकिंग गैस की सप्लाई अब हफ्ते में सिर्फ एक बार आ रही है और एक सिलेंडर का दाम 3000 श्रीलंकन रुपए से बढ़ाकर अब 4200 लंका रुपए कर दिया गया है.
श्रीलंका की न्यूज़ पेपर और प्रिंटिंग इंडस्ट्री तक पर इसका असर दिख रहा है. जैसा कि इनसाइड प्रेस इंडिया ने अपनी खबर में बताया भी था कि श्रीलंका ने पेपर की कमी के चलते अपने देश में परीक्षाओं तक को रद्द कर दिया था, ऐसे ही अब वहां के अखबारों को अपने प्रिंटिंग कम करनी पड़ रही है क्योंकि वहां पर प्रिंटिंग मैटेरियल तक की कमी है.
इस तरह की वित्तीय हालात और खाने-पीने के सामानों की किल्लत के चलते श्रीलंका में बहुत से लोगों ने वहां से पलायन करना शुरू कर दिया है.
हाल ही में तमिलनाडु कोस्ट गार्ड ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से सूचना भी दी है कि उन्होंने एक श्रीलंकन परिवार को भारतीय तट पर पकड़ा है, और उस परिवार ने एक भारतीय नाविक को ₹50000 दिए थे कि वह उन्हें भारत के किसी आईलैंड पर छोड़ दे. कोस्ट गार्ड ने अब उस श्रीलंकन परिवार को पुलिस को सौंप दिया है जहां से पुलिस ने उन्हें एक शरणार्थी कैंप में शिफ्ट कर दिया है.
तमिलनाडु की पुलिस के मुताबिक लगभग 2000 से अधिक श्रीलंकन शरणार्थी अगले हफ्ते तक भारत आ सकते हैं.
इसी को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने मीटिंग की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ और उनसे अनुमति मांगी कि राज्य सरकार को अलाउ किया जाए कि जो श्रीलंकन शरणार्थी उनके राज्य में आएंगे वे उन्हें मानवीय मदद प्रदान कर सकें.
भारत सरकार ने श्रीलंका को और भी कई तरह से सहायता प्रदान करने की कोशिश की है. 17 मार्च 2022 को श्रीलंका के वित्त मंत्री ने $1 Billion कि एक क्रेडिटलाइन साइन की है भारत सरकार के साथ, इससे पहले इसी साल एक $500-Million क्रेडिट लाइन पेट्रोल उत्पादों की खरीद के लिए भी की गई थी श्रीलंका सरकार के द्वारा, और भारत ने $400 million का करंसी स्वैप भी किया था श्रीलंका के साथ, और अब श्रीलंका $1billion कि क्रेडिटलाइन की अतिरिक्त सहायता चाहता है भारत सरकार से, ताकि श्रीलंकन सरकार रोजमर्रा के सामान तो कम से कम आयातित कर सके जिससे इस स्थिति को थोड़ा सुधारा जा सके.
भारत अकेला देश नहीं है जिसके पास जाकर श्रीलंका ने मदद मांगी है श्रीलंका ने चाइना से भी मदद मांगी है. हालांकि श्रीलंका,चाइना के ही कर्ज में डूबा हुआ है बहुत सारी लोन की रीपेमेंट्स श्रीलंका को चाइना को करनी थी और अब श्रीलंका ने चाइना से रिक्वेस्ट की है कि उन लोन पेमेंट को दोबारा से रिस्ट्रक्चर किया जाए.
इसके साथ ही श्रीलंका ने चाइना से $2.5 billion की क्रेडिट लाइन की भी मदद मांगी है.
इनके अलावा श्रीलंका की बात इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड और विश्व बैंक से भी चल रही है.
जानकारी के मुताबिक श्रीलंका के प्रेसिडेंट अगले महीने यूएस के एक दौरे पर भी जा सकते हैं जिससे इस हालात से बाहर निकलने के रोडमैप पर कोई प्लान बनाया जा सके.
आपने अभी तक पढ़ा की श्रीलंका की क्या हालत हो गई है और वहां के आंतरिक हालात और वहां की अर्थव्यवस्था किस तरह के संकट में फंसी हुई है. आपके मन में अब यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि आखिर इन सब के पीछे कारण क्या रहे.
तो हम आपको बता दें कि कोई एक मुख्य कारण नहीं है श्रीलंका की इन हालात के पीछे इसके पीछे कुछ ऐसे कारण है जिनका long-term प्रभाव है जो आज श्रीलंका में देखने को मिल रहा है.
आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि वह कौन से मुख्य कारक रहे जिन्होंने आज श्रीलंका के इकॉनमी को इस तरह बर्बाद कर दिया.
सबसे पहले अगर बात की जाए तो 2018 तक श्रीलंका टूरिज्म की एक टॉप डेस्टिनेशन में आता था. जहां पर हर साल बहुत से विदेशी पर्यटक घूमने के लिए जाते थे. सन 2018 श्रीलंका के लिए एक record-breaking साल रहा था क्योंकि उस साल लगभग 2.3 milion विदेशी पर्यटक श्रीलंका घूमने आए थे.
श्रीलंका की जीडीपी का लगभग 12% से 13% हिस्सा सिर्फ टूरिस्ट इंडस्ट्री पर निर्भर करता है जो कि एक बहुत बड़ा हिस्सा है. और फिर अप्रैल 2019 में श्रीलंका में बहुत सारे बम धमाके हुए जिन्हें ईस्टर्न बोम्बिंग्स भी कहा जाता है इनमें तीन होटल और तीन चर्च को टारगेट किया गया अलग-अलग जगहों पर, इन धमाकों में 290 लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए जिनमें से 45 लोग विदेशी पर्यटक थे, और श्रीलंकन सरकार को और वहां के पर्यटन को इस एक चीज से बड़ा झटका लगा इन बम धमाकों के पीछे 8 लोगों का हाथ था जो श्रीलंका के थे और एक लोकल इस्लामिक आतंकवादी ग्रुप से जुड़े हुए थे. इसके चलते अगले ही महीने श्रीलंका में एक एंटी मुस्लिम वायलेंस देखने को मिला, वहां बहुत से मुस्लिम लोगों के घरों पर गाड़ियों पर हमला किया गया जिसके बाद सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बैन कर दिया गया और ऐसा करने पर वहां धार्मिक परेशानियां और अधिक बढ़ गई. इन सभी चीजों के चलते वहां के पर्यटन पर इसका एक बहुत बुरा असर देखने को मिला लेकिन यह बस एक शुरुआत मात्र थी.
इसके बाद मार्च 2020 में एंट्री हुई कोविड-19 की और इससे दुनिया भर का पर्यटन ठप पड़ गया . और जैसा कि हमने अभी बताया कि श्रीलंका की लगभग 12% से 13% की जीडीपी सिर्फ पर्यटन पर ही निर्भर करती है इससे वहां की जीडीपी को काफी नुकसान हुआ लेकिन सिर्फ इस कारण की वजह से इतनी बुरी हालत नहीं हो सकती.
और भी ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से आज श्रीलंका को यह दिन देखने पड़ रहे हैं वहां की सरकार की भी इसमें काफी गलती है.
श्रीलंका के वर्तमान राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे 2019 में चुनाव जीतकर पावर में आए. जब यह चुनाव प्रचार कर रहे थे तो उन्होंने यह वादा किया था कि अपने देश में इकोनामिक ग्रोथ को पुनर्जीवित करेंगे उन्होंने एक और वादा किया था जनता से कि अगर यह पावर में आते हैं तो यह श्रीलंका में VAT जानी वैल्यू ऐडेड टैक्स को भी आधा कर देंगे.
टैक्स कम करने के पीछे इनका मकसद था कि अगर यह टेक्स कम करेंगे तो लोग ज्यादा चीजें खरीदेंगे जिससे कि उपभोग अगर बढ़ेगा तो अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी. और इस पूरी सोच में कोई गलती नजर नहीं आती क्योंकि यह चीज है कई जगह काम भी करती हैं. लेकिन शायद यह सभी चीजें सही वक्त और हालातों को समझते हुए लागू नहीं की गई. श्रीलंका ने इस फैसले को 1 दिसंबर 2019 को लागू कर दिया और सिर्फ 3 महीने बाद ही कोविड-19 ने सब को अपनी चपेट में ले लिया.
तो उनका यह जो लॉजिक था कि अगर वह टेक्स्ट कम करेंगे तो लोग ज्यादा सामान खरीदेंगे, लेकिन अगर लॉक डाउन लग जाएगा तो जब लोग बाहर ही नहीं निकले तो उस तरह का उपभोग जो श्रीलंका की सरकार सोच कर बैठी थी वह हो ही नहीं सका इस की वजह से अर्थव्यवस्था में ग्रोथ हो नहीं सकी और इससे वहां की सरकार को बहुत अधिक रेवेन्यू का घाटा हुआ.
इससे श्रीलंका की public debt बढ़ती चली गई जो कि 2019 में 94% के मुकाबले 2021 में बढ़कर 119% तक पहुंच गई.
इसके अलावा इन के राष्ट्रपति द्वारा एक बहुत ही बड़ा फैसला और लिया गया. जैसा कि राष्ट्रपति ने अपने चुनाव के दौरान वादा किया था कि यह श्रीलंका में कृषि को पूरी तरह ऑर्गेनिक कर देंगे
पूर्व में उन्होंने कहा था कि यह लगभग अगले 10 सालों में श्रीलंका को पूरी तरह ऑर्गेनिक बना देंगे. लेकिन एक रात को अचानक से पूरे देश में कृत्रिम कीटनाशकों पर पाबंदी लगा दी गई और इस पर किसानों से कोई सलाह नहीं की गई और ना ही उन्हें इसके लिए पूर्व में कोई तैयार किया गया. इस फैसले को लेने के पीछे वहां की सरकार का एक और कारण भी रह सकता है यह बाहर से जो फ़र्टिलाइज़र आयात करते थे यह उस आयात में भी कमी लाना चाहते थे. इस पूरे फैसले में कहीं कोई कमी नजर नहीं आती लेकिन इसके पीछे जो परेशानी है वह long-term में आपको समझ आएगी.
अगर आपको इसके पीछे का थोड़ा विज्ञान समझाया जाए तो ऑर्गेनिक खाने की बात करें तो ऑर्गेनिक खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है और इसके कई तरह के फायदे भी हैं. लेकिन अगर इसकी कृषि की बात की जाए तो उसकी एफिशिएंसी ( efficiency) अथवा निपुणता इतनी अधिक नहीं होती शॉर्ट टर्म में, ऐसा भी कहा जाता है कि शॉर्ट टर्म में 20% से लेकर 30% तक कम उपज प्राप्त होती है अगर ऑर्गेनिक कृषि की शुरुआत में क्योंकि फर्टिलाइजर्स का प्रयोग नहीं करेंगे तो कुछ समय लगता है भूमि अथवा फसल को उस वातावरण के अनुसार स्वयं को बदलने में.
और इसका सीधा सीधा प्रभाव देखने को मिला श्रीलंकन की इकॉनमी में इस फैसले से पूर्व श्रीलंका कम से कम चावल और चाय जैसे उत्पादों के लिए बाहर के देशों पर निर्भर नहीं करता था लेकिन इस फैसले के बाद सिर्फ 6 महीने के भीतर ही वहां की सरकार को $450 Million खर्च करने पड़े चावल को बाहर से आयात करने के लिए.
और चाय को निर्यात करना श्रीलंका की सरकार के लिए विदेशी मुद्रा कमाने का एक बड़ा जरिया था और इस फैसले के बाद वहां का चाय का यह व्यवसाय भी बुरी तरह प्रभावित हुआ.
ऑर्गेनिक फार्मिंग हमारी सेहत और पर्यावरण के लिए बहुत ही अच्छी होती है लेकिन इसके अच्छे बदलाव के लिए किसके साथ थोड़ा long-term जाना पड़ता है. अगर इसका एक उदाहरण लिया जाए तो भारतीय राज्य सिक्किम हाल ही में 100% ऑर्गेनिक राज्य बना है. लेकिन अगर सिक्किम की ऑर्गेनिक बनने की जर्नी की बात की जाए तो सिक्किम ने 2003 से ही शुरुआत कर दी थी इस प्लान के ऊपर और साल 2016 में जाकर इन्होंने यह घोषणा की कि सिक्किम अब एक ऑर्गेनिक स्टेट है, तो आप देख सकते हैं कि सिक्किम को कितना वक्त लग गया इस प्लान को एग्जीक्यूट करने में वह भी तब जब वह भारत जैसे एक बड़े और समृद्ध देश का हिस्सा था.
अगर अब आगे चल कर बात करें तो फिर लंका की इस वित्तीय समस्या के पीछे एक और कारण है और वह है वहां के फूड माफिया, श्री लंकन सरकार का कहना है कि वहां के फूड माफिया वहां अनाज की कालाबाजारी कर रहे हैं, और रोजमर्रा के सामान जैसे चावल दाल और सब्जियों तक की कालाबाजारी चल रही है.
इन सब के बाद एक और कारण है विदेशी कर्ज, जिसके नीचे श्रीलंका शायद सबसे ज्यादा दबा हुआ है और यह श्रीलंका के लिए कोई नई समस्या नहीं है यह श्रीलंका की काफी सालों से चलती आ रही समस्या रही है.
साल 2017 में श्रीलंका का कुल कर्ज 64 बिलियन डॉलर था और इस समय भी उनकी सरकार का लगभग 95% रेवेन्यू सिर्फ इस लोन को चुकाने में चला जाता था.
साल 2020 में श्रीलंका पर 51 बिलीयन डॉलर का कर्ज था और इस टाइम श्रीलंका ने इंपोर्ट बैन लगा दिया विदेशी मुद्रा पर इस लोन को चुकाने के लिए.
इन सब हालातों के पीछे चाइना को भी वजह माना जा रहा है. चाइना जिस तरह छोटे देशों को अपने कर्ज जाल में फंसा रहा है वह एक बड़ा कारण है.
चाइना छोटे देशों को billion-dollar रकम देता है कि वे अपने देश में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाएं चाइना वहां बड़े-बड़े एयरपोर्ट अथवा रोड या बंदरगाहों का निर्माण करवाता है और जब दूसरा देश उस से प्रॉफिट नहीं कमा पाता या उनके द्वारा लिए गए लोन की किस्तें नहीं भर पाता तो चाइना उस पूरी निर्माण को अपने कब्जे में ले लेता है.
इसका सबसे अच्छा उदाहरण है श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह जो कि नवंबर 2010 में बनाया गया था लगभग 1.3 बिलीयन डॉलर की लागत से चाइना से लोन लेकर लेकिन इस port को काफी अधिक घाटा सहना पड़ा और श्रीलंका इस लोन को वापस नहीं चुका सका इसलिए वहां की सरकार ने यह फैसला लिया कि इस बंदरगाह के 80% स्टेक को किसी प्राइवेट कंपनी को बेच दिया जाएगा.
और जब इसकी बोली लगाई गई तो एक चाइनीज कंपनी China merchants group Limited को इसका 70% स्टेक बेच दिया गया 2017 में.
और इसके बदले श्रीलंका को 1.2 बिलियन डॉलर मिले.
और इन्हीं सब कारणों की वजह से अब श्रीलंकन रुपए की वैल्यू भी लगातार गिरती जा रही है.
पिछले महीने मार्च की शुरुआत में $1 लगभग 200 श्रीलंकन रुपए के बराबर था और आज $1 लगभग 300 श्रीलंकन रुपए के बराबर पहुंच चुका है. अब क्योंकि इनके करेंसी की वैल्यू लगातार गिरती जा रही है तो यह अपनी बची हुई करेंसी से जो भी चीजें बाहर के देशों से आयात कर रहे हैं वह भी इन्हें महंगे दाम पर खरीदनी पड़ रही है, और इससे इनके देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है.
वर्तमान हालात में जैसा कि हमने आपको बताया कि वहां के सभी 26 मंत्रियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है. लेकिन वहां के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे और उन्हीं के भाई वहां के प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है.
श्रीलंका कि लोगों में गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा है और लोग इस कर्फ्यू का भी अब विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं.
श्रीलंका की इस हालत का असर कहीं ना कहीं भारत पर भी देखने मिलेगा. जब श्रीलंका में इस तरह की अनिश्चितता बढ़ेगी तो भारत में श्रीलंका से अधिक शरणार्थी प्रवेश करेंगे जिससे भारत सरकार पर भी इसका असर पड़ेगा.
फिलहाल तो सिर्फ यही उम्मीद की जा सकती है कि श्रीलंका को जो वित्तीय सहायता अथवा क्रेडिटलाइन दी जा रही है उससे यह अपनी अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार लेकर आएंगे और यह स्थिति जल्दी ही सामान्य हो जाएगी.
हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल इनफॉर्मेटिव लगा होगा. कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में अपने कीमती सुझाव हमें दें,और हमें हमारे सोशल मीडिया हैंडल्स पर फॉलो करना ना भूलें.
जय हिंद 🇮🇳